सोमवार, 25 मई 2009

संवेदनाओं के शिखर . . .

मन मेरा जो इतना आहत है,

फिर क्‍यों इस दिल में चाहत है ।

अन्‍तर्मन में खोखली हंसी के कहकहे,

कहते हों जैसे, कैसे लबों पे मुस्‍कराहट है ।

संवेदनाओं के शिखर अब ढहने लगे हैं,

नयनों में भी अश्‍को की छटपटाहट है ।

सच्‍चाइयों की बस्तियां वीरान हैं जबसे,

झूठ की ऊंची इमारतों में जगमगाहट है ।

बेनकाब हो के सदा मायूसी ये बोली मुझसे,

किसके लबों पे आज सच्‍ची खिलखिलाहट है

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....