शुक्रवार, 22 मई 2009

लौट आती देह में . . .

जल ही जीवन है,

नहीं इसके बिना कोई जीवन है,

एक बूंद से,

निश्‍वास होती सांस

लौट आती देह में,

जल ही जीवन है . . . ।

समझो तो सार इसका,

मीन से, जब तक,

जल में रही

सब कुछ इसका था जल,

सांस, आस, विश्‍वास,

न होती एक पल स्थिर,

न आती एक पल उदासी,

चंचलता हर पल रहती,

इसके साथ,

जल ही जीवन है . . . ।

हर ओर था जीवन,

सब ओर था उल्‍लास,

लेकिन जल में रहकर भी,

नहीं बुझी थी प्‍यास,

जीवन था उसका जल,

जल ही जीवन है . . . ।

नहीं रह पाता

कोई भी निर्जल

जल ही जीवन है . . . ।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....